पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता ही परम् तप:
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवता
मुझे गर्व है की ईश्वर ने मुझे एक अध्यापक का जीवन दिया
। मुझे जीवन भर ज्ञान एवं सादगी में भरोसा रहा । प्रयास करता रहा की अपने
समाज एवं संस्था से जुड़े बच्चो में संस्कार, सरलता, सादगी एवं वैज्ञानिक ढंग से
सोच विचार की जिज्ञासा जाग्रत हो । अपने से मेरी मान्यता है की अच्छे मानसिक विकास
के लिए शारीरिक स्वस्थता सबसे आवश्यक पहलू है । बच्चो का सर्वागीण विकास करे,
तन्मयता से । अगर संभव हो तो शैक्षणिक संस्थाए प्रमुख त्योहारों को छोड़
अवकाश की प्रथा समाप्त करने का प्रयास करें । .. (स्व.) प्रोफेसर तेजसिंह जी चौधरी
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